विज्ञान के नियमो से परे है रामायण काल का यह विचित्र मंदिर…

हैदराबाद से 308 किमी और विजयवाड़ा से 359 किमी दूर, आंध्र प्रदेश के कुरनूल में स्थित इस मंदिर का नाम है श्री यंगती उमा महेश्वर मंदिर है… यह मंदिर प्राचीन काल के पल्लव, चोला, चालुक्य और विजयनगर शासकों की परंपराओं को दर्शाता है… यहां के बारे में स्थानीय लोग एक कथा के बारे में बताते हैं कि…
“ तब अगस्त्य ऋषि तपस्या कर रहे थे, तो कौवे उनको आकर परेशान कर रहे थे… नाराज ऋषि ने शाप दिया कि वे अब यहां कभी नहीं आ सकेंगे… चूंकि कौए को शनिदेव का वाहन माना जाता है, इसलिए यहां शनिदेव का वास भी नहीं होता…“
इस मंदिर मैं… शिव-पार्वती अर्द्धनारीश्वर के रूप में विराजमान हैं और इस मूर्ति को अकेले एक पत्थर को तराशकर बनाया गया है… इस मंदिर को 15वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के संगम वंश के राजा हरिहर बुक्का राय के द्वारा बनवाया गया था…
इस मंदिर में नंदी की मूर्ति का आकार आश्चर्य जनक रूप से इतना बढ़ गया, की खम्बो को हटाना पड़ा… अपने आप में इस अनोखे मंदिर के बारे में कहा जा रहा है कि यहां नंदी के बढ़ते आकार की वजह से रास्ते में पड़ रहे कुछ खंबों को हटाना पड़ गया है… एक-एक करके यहां नंदी के आस-पास स्थित कई खंबों को हटाना पड़ गया है…
इस मंदिर की एक खास बात और भी है कि यहां पुष्कर्णिनी नामक पवित्र जलस्रोत से हमेशा पानी बहता रहता है… कोई नहीं जानता कि साल के बारह महीने इस पुष्कर्णिनी में पानी आता कहां से ह??? भक्तों का मानना है कि मंदिर में प्रवेश से पहले इस पवित्र जल में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं…
